बिहार चुनाव का असली सच: 10% वोटों के फासले ने कै45से दिलाई 200 सीटों की सुनामी?

बिहार चुनाव का असली सच:हालिया बिहार विधानसभा चुनावों में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) ने 243 में से 200 से अधिक सीटें जीतकर एक ऐतिहासिक जीत दर्ज की। लेकिन सवाल यह है बिहार चुनाव का असली सच:कि वोट शेयर में महज़ 10 प्रतिशत की बढ़त सीटों के इतने बड़े अंतर में कैसे बदल गई? इसका जवाब सिर्फ आंकड़ों में नहीं, बल्कि बिहार की राजनीति में आए एक बुनियादी संरचनात्मक बदलाव में छिपा है, जिसने मुकाबले को पूरी तरह से दो-ध्रुवीय बना दिया।आइए उन तीन प्रमुख कारकों को समझते हैं जिन्होंने इस चुनावी सुनामी को जन्म दिया।

बिहार चुनाव का असली सच:

यह सिर्फ 10% वोट शेयर का खेल नहीं है

बिहार चुनाव का असली सच:पहली नज़र में, अंकगणित सीधा लगता है। एनडीए को 47.2% वोट मिले, जबकि महागठबंधन (MGB) को 37.3% वोट हासिल हुए। यह लगभग 10 प्रतिशत अंकों का एक महत्वपूर्ण अंतर है, लेकिन यह अकेले सीटों में इतने बड़े पैमाने पर जीत की व्याख्या नहीं करता है। इसका असली कारण भारत की ‘फर्स्ट-पास्ट-द-पोस्ट’ चुनावी प्रणाली में निहित है, बिहार चुनाव का असली सच:जो वोट शेयर के फायदे को कई गुना बढ़ा देती है, खासकर तब जब राजनीतिक मुकाबला दो मुख्य गठबंधनों के आसपास सिमट जाता है।बिहार चुनाव का असली सच: बिहार चुनाव का असली सच: यही राजनीतिक ध्रुवीकरण एनडीए की जीत का असली इंजन था।

अनेक दलों की लड़ाई से दो-ध्रुवीय मुकाबले तक: बिहार की राजनीति का नया चेहरा

बिहार की राजनीति में असली कहानी वोट प्रतिशत में वृद्धि नहीं, बल्कि चुनावी मुकाबले की संरचना में हुआ बदलाव है। ऐतिहासिक रूप से, बिहार की राजनीति अत्यधिक खंडित रही है, जिसमें कई दल एक-दूसरे के खिलाफ प्रतिस्पर्धा करते थे। इस बदलाव को मापने का सबसे अच्छा तरीका ‘प्रभावी दलों की संख्या’ (Effective Number of

Parties – ENOP) नामक सूचकांक है। सरल शब्दों में, यह सूचकांक बताता है कि किसी चुनाव में वास्तव में कितने दल प्रभावी ढंग से प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं। यदि ENOP का मान 3 से अधिक है, तो यह एक खंडित, बहुकोणीय मुकाबले का संकेत देता है, जबकि 2 का मान एक सीधी, दो-ध्रुवीय लड़ाई को दर्शाता है।अतीत में, बिहार का उच्च ENOP मान (अक्सर 3 से ऊपर) यह सुनिश्चित करता था कि वोट कई उम्मीदवारों में बंट जाएं, जिससे वोट शेयर को

बड़ी संख्या में सीटों में बदलना मुश्किल हो जाता था। लेकिन हाल के चुनावों ने इस प्रवृत्ति को उलट दिया है, और बिहार का ENOP मान प्रभावी रूप से 2 के करीब आ गया है,बिहार चुनाव का असली सच: जो एक स्पष्ट दो-ध्रुवीय मुकाबले का संकेत है।”बिहार की राजनीति में असली बदलाव वोटों के प्रतिशत में नहीं, बल्कि मुकाबले की संरचना में आया है। अनेक छोटे-छोटे दलों की लड़ाई अब दो बड़े गठबंधनों के बीच सीधी टक्कर में बदल गई है, और इसी बदलाव ने एनडीए की जीत को इतना बड़ा बना दिया।”

गठबंधन का गणित: एनडीए ने कैसे बाजी मारी और MGB कहाँ चूका?

बिहार चुनाव का असली सच:दोनों गठबंधनों के प्रदर्शन का विश्लेषण इस संरचनात्मक बदलाव को और भी स्पष्ट करता है।• महागठबंधन (MGB):• अत्यंत पिछड़ी जातियों को लुभाने के लिए विकासशील इंसान पार्टी (VIP) को (मल्लाह समुदाय के लिए) और इंडियन इंक्लूसिव पार्टी को (तांती-पान समुदाय के लिए) शामिल करने के बावजूद, MGB का वोट शेयर स्थिर रहा और यह अपने 2020 के 37.23% के प्रदर्शन में सुधार नहीं कर सका। जाति-आधारित समीकरण साधने की उनकी रणनीति अतिरिक्त वोट जुटाने में विफल रही।बिहार चुनाव का असली सच:

• राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA):

• इसके विपरीत, एनडीए ने अपने वोट शेयर में लगभग 10 प्रतिशत अंकों की उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की। इस बढ़त के मुख्य स्रोत थे:• लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) की वापसी, जिसने अकेले 5.5% वोटों का योगदान दिया।• भाजपा (1.5%) और जद(यू) (3%) दोनों द्वारा अपने वोट शेयर में विस्तार।• जद(यू) का लाभ विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसे

दो कारकों से सीधा फायदा हुआ: पहला, लोजपा(आरवी) समर्थकों के हस्तांतरणीय वोट, क्योंकि 2020 में इसी पार्टी ने चिराग पासवान के नेतृत्व में विशेष रूप से जद(यू) के उम्मीदवारों के खिलाफ अपने प्रत्याशी उतारे थे। इस बार उनका साथ आना न केवल वोटों का जुड़ाव था, बल्कि एक लक्षित विरोधी का हटना भी था। दूसरा, महिला मतदाताओं के समर्थन में वृद्धि, जो संभवतः महिलाओं के लिए लक्षित कल्याणकारी योजनाओं से प्रभावित थी।

एक नई राजनीतिक हकीकत?

संक्षेप में, एनडीए की जीत सिर्फ एक चुनावी विजय नहीं थी, बल्कि यह बिहार की दलीय व्यवस्था के एक दो-ध्रुवीय मुकाबले में संरचनात्मक एकीकरण का परिणाम थी। जब वोट शेयर में एक ठोस बढ़त को एक सिमटी हुई राजनीतिक प्रतिस्पर्धा के साथ मिला दिया जाता है, तो एक साधारण जीत चुनावी सुनामी में बदल सकती है।क्या बिहार में स्थापित हुआ यह दो-ध्रुवीय राजनीतिक मॉडल भारत के अन्य राज्यों के चुनावों के लिए एक नया टेम्पलेट बन सकता है?

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